आपने ध्यान दिया होगा, मोदी ने अपना सबसे पहला दौरा भूटान का किया। चीन
भूटान पर अपना प्रभुत्व बनाना चाहता था ताकि वहां पर बंदरगाह बना कर भारत
पर नजर रख सके। मोदी ने चीन की यह चाल विफल कर दी और भूटान को भारत को
दोस्त बना दिया।
यही काम मोदी ने नेपाल के साथ दोस्ती करने किया।
पिछली सरकार ने नेपाल को पूरी तरह से नजरअंदाज किया था जिसका चीन ने पूरा
फायदा उठाया और नेपाल पर अपनी दादागिरी दिखाने लगा। मोदी ने नेपाल को अपना
छोटा भाई बताकर चीन की यह चाल भी नाकाम कर दी।
उसके बाद मोदी ने
जापान का दौरा किया और उन्हें भारत में इन्वेस्ट करने लिए आपंत्रित किया।
जापान ने भारत को एम्फीबियस फाइटर प्लेन देने के साथ साथ बुलेट ट्रेन चलाने
और अन्य कई तरह की मदद करने का भरोसा दिया। जापान ने भारत में कई बिलियन
रुपये के निवेश पर सहमति जताई।
जापान दौरे के बाद चीन के राष्ट्रपति
भारत दौरे पर आये और जापान से भी अधिक निवेश पर सहमति बनी। उसका कारण ये
था कि भारत और जापान की दोस्ती चीन को पसंद नहीं है इसलिए चीन को मजबूरीवश
भारत में जापान से भी अधिक निवेश के लिए राजी होना पड़ा।
फिर मोदी
अमेरिका गए और ओबामा से मिले। अमेरिका ने भारत के साथ न्यूक्लिअर रिएक्टर
मामले में डील की और भारत में जापान और चीन से भी अधिक निवेश करने की सहमति
जताई।
उसके बाद मोदी ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया और ऑस्ट्रेलिया
भारत को यूरेनियम देने पर राजी हुआ। ऑस्ट्रेलिया भी भारत में निवेश करने के
लिए तैयार हो गया।
मोदी के फ्रांस, जर्मनी और कनाडा दौरे से भी इन
देशों के साथ रिश्ते मजबूत होने के साथ साथ लाखों अरब रुपये के निवेश का
रास्ता साफ हुआ।
चीन और पाकिस्तान को भी घेरा मोदी ने
मोदी
जानते हैं कि चीन ने भले ही भारत में कई लाख करोड़ रुपये निवेश करने पर
सहमती जताई हो लेकिन चीन का कभी भी विश्वास नहीं किया जा सकता। चीन भी अपना
दोहरा चरित्र दिखाता रहता है इसीलिए मोदी ने पाकिस्तान के साथ साथ चीन को
भी घेरने की पूरी कोशिश की।
मोदी ने जापान का दौरा करने से पहले ही चीन को उसकी आँखों में आंखें डालकर बात करने का संकेत दे दिया था।
उसके बाद मोदी ने भूटान, नेपाल, साउथ कोरिया, सिंगापुर, सेचेलेस, मौरीसस आदि देशों का दौरा करके इनके साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाए।
चीन को सबसे तगड़ा झटका तब लगा जब मोदी ने चीन के पडोसी देश मंगोलिया का
दौरा करके उसे एक तरह से गोद ले लिया। इस बात से चीन को खूब मिर्ची लगी और
उसने फटाफट पाकिस्तान का दौरा करके उसे अपना सबसे अजीज दोस्त बताया।
अफ़ग़ानिस्तान तो भारत का पहले से ही दोस्त है। मोदी ने ताजा दौरे में
उज्बेकिस्तान और कजाखस्तान का दौरा करके चीन को इस तरफ से भी घेर लिया।
दोनों देश भारत के साथ रक्षा, सुरक्षा और अन्य कई क्षेत्रों में सहयोग
बढाने पर राजी हो गए।
आज रूस ने भी बोल दिया है कि वो भारत से अपने संबंधों को और मजबूत करेगा। साथ ही रूस ने भारत को SCO की सदस्यता भी दिलवा दी।
मोदी तुर्कमेनिस्तान, तजाकिस्तान और किर्गिस्तान का दौरा करने चाइना को पूरी तरह से घेर लेंगे।
इसके बाद मोदी इजराइल का भी दौरा करने वाले हैं जिस पर पूरी दुनिया की नजर
होगी। इजराइल छोटा सा देश होने का बावजूद भी दुश्मनों के घर में घुसकर
मारता है और तकनीत के क्षेत्र में सभी देशों से आगे है। रक्षा और हथियार के
क्षेत्र में भी इजराइल को कोई जोड़ नहीं है।
कब आयेंगे मोदी के घूमने के नतीजे
मोदी के भारत में निवेश लाने, भारत में आर्थिक प्रगति करके नौजवानों को
रोजगार देने और कृषि एवं तकनीक के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के
लिए कम से कम पांच साल लगेंगे। पांच साल में ही देश का विकास नहीं हो
जाएगा। आर्थिक प्रगति जरूर होगी और विकास का माहौल भी बनेगा। आर्थिक प्रगति
होने से देश में महगाई पर अंकुश लगेगा। भारत के नागरिक जिम्मेदार बनेंगे,
स्वच्छ भारत अभियान और निर्मल भारत अभियान से देश को साफ़ सुथरा बनाया
जाएगा। नौकरी भी बढ़ेगी। देश का खजाना भी बढेगा। रोड, रेल और सिंचाई के
क्षेत्र में भी काफी काम होगा। लेकिन पांच साल में एक भी स्मार्ट सिटी नहीं
बन पाएगी। क्यूंकि स्मार्ट सिटी बनाने में काफी वक्त लगता है इसीलिए मोदी
ने सबको घर देने के लिए 2022 का लक्ष्य दिया है। वैसे भी भारत में कांग्रेस
पांच साल में एक AIIMS जैसा अस्पताल नहीं बना पाती तो पांच साल में
स्मार्ट सिटी कैसे बन जाएगी। इसके बावजूद कांग्रेस अगले लोकसभा चुनावों में
स्मार्ट सिटी और बुलेट ट्रेन के साथ साथ कालेधन में 15 लाख के हिस्से देने
के मुद्दे पर बीजेपी को जरूर घेरेगी और देश भर में मोदी के खिलाफ माहौल
बनाने की पूरी कोशिश करेगी। अगर देश की जनता ने पिछली बार की तरह अगली बार
भी काग्रेस की बातों मे बातों में आकर अटल को हटाने जैसा निर्णय ले लिया तो
ना बनेगी स्मार्ट सिटी और ना चलेगी बुलेट ट्रेन। कांग्रेस सत्ता में आते
ही पिछली बार की तरह बीजेपी के सभी प्रोजेक्ट बंद करा देगी और फिर से शुरू
हो जाएगा खेल।
क्या सच में मोदी केवल घूम रहे हैं
हमारा देश एक
विकासशील देश है। हमें भोजन, सुरक्षा, इंधन आयल और तकनीक के लिए अभी भी कई
देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। हमारे देश में हमारी जनसँख्या के हिसाब से
भोजन का उत्पादन नहीं हो पाता और हम आज भी दालें, फूड आयल और कई तरह के
खाद्य पदार्थ, विदेशी देशों से आयात करते हैं। उदाहरण के लिए – भगवान ना
करे – लेकिन अगर हमारे देश में बेमौसम बरसात हो जाए और किसानो की पैदावार
नष्ट हो जाए तो हमारे लिए भोजन का इंतजाम कहाँ से होगा। अगर हमारे देश में
कुछ सब्जियों, गेंहू, चावल, दालें, तेल आदि की फसल कम वर्षा या अधिक वर्षा
के कारण बर्बाद हो जाए तो, हमारी विशाल जनसँख्या के लिए भोजन का इंतजाम
कहाँ से होगा। अगर हम ईरान, इराक, सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों के साथ
दोस्ताना सम्बंध ना बनायें और सब से दुश्मनी कर लें तो हमारी गाड़ियों में
डाला जाने वाला पेट्रोल और डीजल कहाँ से आएगा। हमारे देश में अभी भी हमारी
जरूरत के हिसाब से हथियारों का उत्पादन नहीं हो पाता और हमें ज्यादातर
हथियार दुसरे देशों से खरीदने पड़ते हैं। अगर हम तुरंत ही दुसरे देशों से
हथियार खरीदना छोड़ दें और खुद ही सभी हथियारों की खोज और उत्पादन पर ध्यान
दें तो इस काम के लिए हमारे देश को कई साल लग जाएँगे और तब तक पाकिस्तान और
चीन हमें भूनकर खा जाएँगे।
इन सब जरूरतों को पूरा करने के लिए हमारे
देश के प्रधानमंत्री को अपने पडोसी देशों के साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाने के
साथ साथ दुश्मन देशों की चालों को नाकाम करने के लिए विदेश नीति को मजबूत
करने के लिए विदेशी देशों का दौरा करना पड़ता है ताकि जरूरत पड़ने पर वे
हमारे बुरे समय में हमारा साथ दे सकें। इसीलिए मोदी जब से प्रधानमंत्री बने
हैं, विदेशी देशों का दौरा करके उनके साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाने के साथ
साथ सुरक्षा और रक्षा के क्षेत्र में भी सामंजस्य बनाने की कोशिश कर रहे
हैं।
विदेशी इन्वेस्टमेंट क्यूँ जरूरी
हमारा खजाना इतना मजबूत नहीं
है कि रातों रात, रोड, रेलवे लाइने, फक्ट्रियां, हाईवे, मेट्रो, बुलेट
ट्रेन, पॉवर प्लांट, नहरें, स्कूल, अस्पताल आदि खुलवाकर हमारी विशाल
जनसँख्या को रोजगार दिया जा सके। इसके लिए हमें विदेशों से लोन लेना पड़ेगा।
विदेशों से लोने लेने पर उसका भारी भरकम व्याज देना पड़ेगा। पाकिस्तान और
कई देशों ने विदेशों से इतना पैसा उधार ले रखा है कि आप अंदाजा भी नहीं लगा
सकते। विदेशों से लोन लेकर और उसका भारी भरकम ब्याज चुकाने से अच्छा है कि
भारत में एक अच्छा माहौल बनाकर बाहर की कंपनियों को भारत में ही निवेश
करने के लिए आमंत्रित किया जाए। विदेशी कंपनियां हमारे यहाँ पैसे इन्वेस्ट
करेंगी, बड़े बड़े कारखाने खोलेंगी तो हमारे नौजवानों को रोजगार मिलेगा, साथ
ही साथ हमारे नौजवान विदेशी कंपनियों की तकनीक को सीखकर खुद ही तकनीक के
क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे। हमारे नौजवानों को रोजगार मिलने से सरकार को बाहरी
निवेशकों और हमारे देश के कर्मचारियों से टैक्स के रूप में भारी भरकम कमाई
होगी जिसे हमारी सरकार सड़कें बनवाने, स्कूल, अस्पताल, पॉवर प्लांट, रेलवे
विस्तार, मेट्रो, बुलेट ट्रेन, नहर आदि बनाने में खर्च करेगी। बहुत सारे
लोग कहते हैं कि स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ। अभी मोदी जी भी ऐसा सोच लें और
बाहरी चीजों का त्याग करके केवल स्वदेशी चीजें विकसित करें तो पांच साल बाद
हमारी ही जनता उन्हें सत्ता से बाहर कर देगी। हमारे देश की जनता को
रिजल्ट्स के लिए इन्तजार करने की आदत नहीं है। अटल बिहारी वाजपेयी का
उदाहरण हम देख ही चुके हैं। और अटल के जाने के बाद 10 साल क्या हुआ, उसे
बताने की जरूरत नहीं है। सबसे पहले हमें सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनने
पर विचार करना होगा साथ ही साथ स्वदेशी तकनीकें भी विकसित करनी होंगी।
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