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27 अगस्त 2020

जब मुँह खोलोगे ही नहीं तो फँसोगे कैसे- एक चुप सौ सुख

        !! एक चुप सौ सुख!!
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जब मुँह खोलोगे ही नहीं तो फँसोगे कैसे

एक मछली मार कांटा डाले तालाब के किनारे बैठा था। काफी समय बाद भी कोई मछली कांटे में नहीं फँसी, ना ही कोई हलचल हुई तो वह सोचने लगा... कहीं ऐसा तो नहीं कि मैने कांटा गलत जगह डाला है, यहाँ कोई मछली ही न हो! उसने तालाब में झाँका तो देखा कि उसके कांटे के आसपास तो बहुत-सी मछलियाँ थीं। उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी मछलियाँ होने के बाद भी कोई मछली फँसी क्यों नहीं! एक राहगीर ने जब यह नजारा देखा तो उससे कहा: लगता है भैया, यहाँ पर मछली मारने बहुत दिनों बाद आए हो! अब इस तालाब की मछलियाँ कांटे में नहीं फँसती। 
मछली मार ने हैरत से पूछा: क्यों, ऐसा क्या है यहाँ? राहगीर बोला: पिछले दिनों तालाब के किनारे एक बहुत बड़े संत ठहरे थे।उन्होने यहाँ मौन की महत्ता पर प्रवचन दिया था। उनकी वाणी में इतना तेज था कि जब वे प्रवचन देते तो सारी मछलियाँ भी बड़े ध्यान से सुनतीं। यह उनके प्रवचनों का ही असर है कि उसके बाद जब भी कोई इन्हें फँसाने के लिए कांटा डालकर बैठता है तो ये मौन धारण कर लेती हैं। जब मछली मुँह खोलेगी ही नहीं तो कांटे में फँसेगी कैसे? इसलिए बेहतर यहीं होगा कि आप कहीं और जाकर कांटा डालो।

शिक्षा
एक चुप सौ सुख: परमात्मा ने हर इंसान को दो आँख, दो कान, दो नासिका, हर इन्द्रिय दो-2 ही प्रदान किया है। पर जिह्वा एक ही दी.. क्या कारण रहा होगा ? क्योंकि यह एक ही अनेकों भयंकर परिस्थितियाँ पैदा करने के लिये पर्याप्त है। संत ने कितनी सही बात कही कि जब मुँह खोलोगे ही नहीं तो फँसोगे कैसे? अगर इन्द्रिय पर संयम करना चाहते हैं तो.. इस जिह्वा पर नियंत्रण कर लेवें बाकी सब इन्द्रियां स्वयं नियंत्रित रहेंगी। यह बात हमें भी अपने जीवन में उतार लेनी चाहिए।

संसार में दो प्रकार के पेड़ पौधे होते हैं. Two types three in the world.

#प्रथम : अपना फल स्वयं दे देते हैं,
जैसे - आम, अमरुद, केला इत्यादि ।

द्वितीय : अपना फल छिपाकर रखते हैं,
जैसे - आलू, अदरक, प्याज इत्यादि ।

जो फल अपने आप दे देते हैं, उन वृक्षों को सभी खाद-पानी देकर सुरक्षित रखते हैं, और  ऐसे वृक्ष फिर से फल देने के लिए तैयार हो जाते हैं ।

किन्तु जो अपना फल छिपाकर रखते है, वे जड़ सहित खोद लिए जाते हैं, उनका वजूद ही खत्म हो जाता हैं।
ठीक इसी प्रकार...
जो व्यक्ति अपनी विद्या, धन, शक्ति स्वयं ही समाज सेवा में समाज के उत्थान में लगा देते हैं, #उनका सभी ध्यान रखते हैं और वे मान-सम्मान पाते है।

वही दूसरी ओर जो अपनी विद्या, धन, शक्ति स्वार्थवश छिपाकर रखते हैं, किसी की सहायता से मुख मोड़े रखते है, वे जड़ सहित खोद लिए जाते है, अर्थात् समय रहते ही भुला दिये जाते है।

प्रकृति कितना महत्वपूर्ण संदेश देती है, बस समझने, सोचने और कार्य में परिणित करने की बात है।

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