अगर प्रतिभा का विकास ही कौशल विकास है तो किसी भी कौशल विकास कार्यक्रम
की सार्थकता के लिए यह आवश्यक है की प्रक्रिया की शुरुआत व्यक्तिगत प्रतिभा
को चिन्हित करने से हो;
यह इसलिए भी महत्व्पूर्ण है क्योंकि प्रकृति द्वारा प्रदत्त समस्त संसाधनों में मानव संसाधन ही हमेशा से भारत की विशिष्टता रही है।
आज हम एक युवा देश हैं और जब तक समाज की इस ऊर्जा को संगठित और सशक्त कर राष्ट्र निर्माण के कार्यों में केंद्रित नहीं किया जाता, परस्थितियों में परिवर्तन संभव ही नहीं।
किसी भी कार्यक्रम अथवा योजना की सफलता के लिए यह आवश्यक है की प्रयास के लिए उसकी प्रक्रिया और उद्देश्य सर्वाधिक महत्व्पूर्ण हो पर सामाजिक राजनीतिकरण के इस दौर में जब व्यवस्था तंत्र के लिए समाज कल्याण और राष्ट्रहित से अधिक राजनीति का मह्त्व है तो स्वाभाविक है की शाशन तंत्र की शक्तियों का प्रयोग भी राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ती के लिए हो, ऐसे में, कर्तव्यों और दायित्व की उपेक्षा स्वाभाविक है।
समाज द्वारा चयनित प्रतिनधि का यह दायित्व है की वह व्यवस्था में समाज का प्रतिनिधित्व करे न की राजनीती का, तभी , व्यवस्था के लिए सामाजिक उद्देश्य का मह्त्व राजनीति और राजनीतिक समर्थक अथवा विरोधियों से अधिक होगा।
व्यवस्था तंत्र का राजनीतिक संक्रमण न तो समाज के हित में होगा और न ही राष्ट्र के हित में,इसलिए, यह आवश्यक है की समाज द्वारा चयनित प्रतिनधि व्यवस्था तंत्र में समयानुसार सामाजिक आवश्यकताओं द्वारा शासित हों न की राजनीतिक मानसिकता द्वारा, तभी, पदस्थापित व्यक्ति अपने प्रभाव से व्यवस्था तंत्र की शक्तियों का प्रयोग सामाजिक हित को सिद्ध करने के लिए कर सकेगा न की राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ती के लिए; यही सामाजिक प्रयास के सही अर्थों में सार्थकता की कुंजी भी होगी ।“
यह इसलिए भी महत्व्पूर्ण है क्योंकि प्रकृति द्वारा प्रदत्त समस्त संसाधनों में मानव संसाधन ही हमेशा से भारत की विशिष्टता रही है।
आज हम एक युवा देश हैं और जब तक समाज की इस ऊर्जा को संगठित और सशक्त कर राष्ट्र निर्माण के कार्यों में केंद्रित नहीं किया जाता, परस्थितियों में परिवर्तन संभव ही नहीं।
किसी भी कार्यक्रम अथवा योजना की सफलता के लिए यह आवश्यक है की प्रयास के लिए उसकी प्रक्रिया और उद्देश्य सर्वाधिक महत्व्पूर्ण हो पर सामाजिक राजनीतिकरण के इस दौर में जब व्यवस्था तंत्र के लिए समाज कल्याण और राष्ट्रहित से अधिक राजनीति का मह्त्व है तो स्वाभाविक है की शाशन तंत्र की शक्तियों का प्रयोग भी राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ती के लिए हो, ऐसे में, कर्तव्यों और दायित्व की उपेक्षा स्वाभाविक है।
समाज द्वारा चयनित प्रतिनधि का यह दायित्व है की वह व्यवस्था में समाज का प्रतिनिधित्व करे न की राजनीती का, तभी , व्यवस्था के लिए सामाजिक उद्देश्य का मह्त्व राजनीति और राजनीतिक समर्थक अथवा विरोधियों से अधिक होगा।
व्यवस्था तंत्र का राजनीतिक संक्रमण न तो समाज के हित में होगा और न ही राष्ट्र के हित में,इसलिए, यह आवश्यक है की समाज द्वारा चयनित प्रतिनधि व्यवस्था तंत्र में समयानुसार सामाजिक आवश्यकताओं द्वारा शासित हों न की राजनीतिक मानसिकता द्वारा, तभी, पदस्थापित व्यक्ति अपने प्रभाव से व्यवस्था तंत्र की शक्तियों का प्रयोग सामाजिक हित को सिद्ध करने के लिए कर सकेगा न की राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ती के लिए; यही सामाजिक प्रयास के सही अर्थों में सार्थकता की कुंजी भी होगी ।“
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