28 मई 2016

क्या कारण है कि कभी किसी “सेक्यूलर” नेता द्वारा दीपावली/होली या लोहड़ी/बैसाखी या क्रिसमस/ईस्टर आदि की दावत नहीं दी जाती लेकिन इफ़्तार पार्टी देने की सभी में होड़ लगी हुई होती है ?

भारत – एक ऐसा देश जिसने कई चीज़ों के मायनों को नया आयाम दिया है।










आधुनिक काल में  Secular “सेक्यूलर” शब्द को भी नया आयाम दे दिया गया है। इसका अर्थ अब धर्म निर्पेक्ष होना नहीं रहा वरन्‌ केवल एक खास धर्म की ओर ध्यान देना है। वर्ना क्या कारण है कि कभी किसी “सेक्यूलर” नेता द्वारा दीपावली/होली या लोहड़ी/बैसाखी या क्रिसमस/ईस्टर आदि की दावत नहीं दी जाती लेकिन इफ़्तार पार्टी देने की सभी में होड़ लगी हुई होती है।
सेक्युलर का चोला हमारे देश की मिडिया ने भी ओढ़ रखा है, जो की हिन्दुओ के त्यौहार होली पर पानी उपयोग करने, दीपावली पर पठाके फोड़ने का , गणेश चतुर्थी पर मूर्ति का, विरोध करती है. क्या आपने कभी देखा है कि ईद पर बकरा की बलि ना दी जाए ऐसी news  में दिखाया हो , तो फिर ऐसा क्या कारण है की सिर्फ हिन्दुओ के त्यौहार पर ही इन लोगो को प्रदुषण और पर्यावरण की चिंता होती है. 

पूर्व वर्षो में माननीय राष्ट्रपति जी ने भी इफ़्तार पार्टीया दी हैं? 
क्या कभी दुर्गा पूजा पर पार्टी दी थी? दीपावली पर? क्रिसमस पर।  नहीं दी ना मुझे तो ध्यान नहीं कि टैक्सपेयर्स (tax payers) के खर्चे पर कोई दावत हुई हो!

जब सिर्फ़ एक धर्म विशेष को ही अपीज़ (appease) करना उद्देश्य है तो मेरे ख्याल से सभी टैक्स आदि भी उसी धर्म विशेष के लोगों से लिए जाने चाहिए, क्यों बाकी लोगों के खून पसीने की गाढ़ी कमाई किसी एक तबके पर खर्च की जाए।

और यदि सरकारें आदि धर्मनिर्पेक्ष है तो उनको धर्मनिर्पेक्ष वास्तविक मायनों में रहना चाहिए। सरकारी खर्चे पर कोई धर्म संबन्धित कार्य नहीं होने चाहिए, चाहे पूजा-हवन आदि हो या दावत हो या फिर आरक्षण अथवा छात्रवृत्ति (scholarship) हो। सरकार सभी की होती है, किसी धर्म विशेष की नहीं, तो किसी धर्म विशेष पर अधिक ध्यान देना उचित नहीं।

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