29 जनवरी 2023

मुगल गार्डन को अब अमृत उद्यान के नाम से जाना जाएगा

अपने ट्यूलिप फूलों के लिए मशहूर राष्ट्रपति भवन में बने मुगल गार्डन को अब अमृत उद्यान के नाम से जाना जाएगा. यहां पर 12 तरह के ट्यूलिप फूल की प्रजातियां हैं. 31 जनवरी से यह आम इंसानों के लिए खुलने वाला है, जहां लोग तरह-तरह के फूलों का दीदार कर सकेंगे. राष्ट्रपति भवन में बना मुगल गार्डन 15 एकड़ में फैला है. इसका निर्माण ब्रिटिश शासन के दौर में हुआ था.
1911 में अंग्रेजों ने अपनी राजधानी कोलकाता से दिल्ली बनाई. दिल्ली में रायसीना की पहाड़ी को काटकर राष्ट्रपति भवन तैयार किया गया. उस दौर में राष्ट्रपति भवन को वायसराय हाउस कहा जाता था.

क्यों और कैसे बना मुगल गार्डन?
वायसराय हाउस को एडवर्ड लुटियंस ने डिजाइन किया था. इसके निर्माण के साथ वायसराय हाउस में फूलों का विशेष बगीचा तैयार किया गया, लेकिन तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग की पत्नी लेडी हार्डिंग को यह बगीचा कुछ खास पसंद नहीं आया. बाद में गार्डन का नया नक्शा तैयार किया गया. एडवर्ड लुटियंस ने 1917 में इसके नक्शे को अंतिम रूप दिया और इसे तैयार होने में 11 साल लग गए. 1928 में यह बनकर तैयार हुआ.
शुरुआती दौर में इसमें आम लोगों को एंट्री नहीं दी जाती थी. मुगल गार्डन की खूबसूरती को आम लोगों से रूबरू कराने के लिए देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने हरी झंडी दी. तब से यह परंपरा सी बन गई और अब फरवरी और मार्च में इसे आम लोगों के लिए खोला जाता है.

Mughal Garden

मुगलों का नाम क्यों पड़ा?
इसका नाम मुगलों के नाम पर क्यों रखा गया, इसकी भी एक खास वजह है. राष्ट्रपति भवन की वेबसाइट के मुताबिक, एडवर्ड लुटियंस ने इस राजसी बगीचे को डिजाइन करते समय इस्लामी विरासत के साथ ब्रिटिश कौशल को ध्यान में रखा. मुगल गार्डन की डिजाइन ताजमहल के बगीचों, जम्मू और कश्मीर के बाग और भारत और पर्शिया की पेंटिंग्स से प्रेरित थी. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, उस दौर में मुगलों के नाम पर गार्डन के नाम रखने का चलन था और उसी विरासत को ध्यान में रखते हुए इसे मुगल गार्डन नाम दिया गया.
यह गार्डन मुगलों के नाम पर होने के कारण कई बार इसका नाम बदलने की मांग भी उठ चुकी है. हिन्दू महासभा इसका नाम बदलकर राजेंद्र प्रसाद उद्यान करने की मांग कर चुकी है.

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