"रक्षाबंधन" भाई - बहन के प्यार का त्योहार है, जो सदियों से चला आ रहा है। इतिहास में ऐसी बहुत सी कहानियां हैं जो ये साबित करती हैं कि हर युग में राखी का त्योहार अलग-अलग ढंग से मनाया गया है…
ऐसी ही कुछ कहानियों पर नज़र डालते हैं:-
लक्ष्मी और बलि की कहानी - दानवों के राजा बली ने स्वर्ग की इच्छा की, तो देव इन्द्र को अपने सिहांसन की चिंता होने लगी। अपनी इस चिंता का हल ढुंढने देव इन्द्र भगवान विष्णु के पास जाते है और उन्हें अपनी विपदा बतातें है तब भगवान विष्णु इंद्र की परेशानी दूर को करने के लिए ब्राह्मण का रुप रखकर बलि के द्वार पर भिक्षा मांगने पहुंचे जाते है।
भगवान विष्णु बलि से तीन पग भूमि मांग लेते है और राजा बलि ने उन्हें तीन पग भूमि दान में देते हैं। जब भगवान ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृ्थ्वी को नाप लिया। अभी तीसरा पैर रखना शेष था। बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहा - तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने ठिक वैसा ही किया, श्री विष्णु के पैर रखते ही, राजा बलि पाताल लोक पहुंच गए। बलि के वचनबध होने से भगवान विष्णु काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने बलि से बोला वो उनसे कुछ भी मांग सकते हैं।
राजा बलि ने बस भगवान को अपने सामने रहना का वचन मांगा। भगवान विष्णु ने बलि की इच्छा पूरी की और उनके द्वारपाल बन गये, लेकिन जब ये बात माता लक्ष्मी को पता चली तो, उन्होंने राजा बलि को राखी बांधकर अपना भाई बना लिया और जब राजा बलि ने उनसे उपहार मांगने को कहें - तो उन्होंने अपने पति विष्णु को उपहार में मांग लिया। जिस दिन लक्ष्मी जी ने राजा बलि को राखी बांधी उस दिन श्रावण पूर्णिमा थी। कहते हैं कि उस दिन से ही राखी का त्यौहार मनाया जाने लगा।
जब इन्द्राणी ने बांधा देवराज इंद्र को रक्षा सूत्र - एक बार देवताओं और दानवों में कई दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ जिसमे की देवताओं की हार होने लगी, यह सब देखकर देवराज इंद्र बड़े निराश हुए तब इंद्र की पत्नी शचि ने विधान पूर्वक एक रक्षासूत्र तैयार किया और श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को ब्राह्मणो द्वारा देवराज इंद्र के हाथ पर बंधवाया जिसके प्रभाव से इंद्र युद्ध में विजयी हुए। तभी से यह “रक्षा बंधन” पर्व ब्राह्मणों के माध्यम से मनाया जाने लगा। आज भी भारत के कई हिस्सों में रक्षा बंधन के पर्व पर ब्राह्मणों से राक्षसूत्र बंधवाने का रिवाज़ है।
द्रौपदी का श्री कृष्ण को राखी बांधना
महाभारत में कृष्ण ने शिशुपाल का वध अपने चक्र से किया था। शिशुपाल का सिर काटने के बाद जब चक्र वापस कृष्ण के पास आया तो उस समय कृष्ण की उंगली कट गई भगवान कृष्ण की उंगली से रक्त बहने लगा। यह देखकर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का किनारा फाड़कर कृष्ण की उंगली में बांधा था, जिसको लेकर कृष्ण ने उसकी रक्षा करने का वचन दिया था। इसी ऋण को चुकाने के लिए दु:शासन द्वारा चीरहरण करते समय कृष्ण ने द्रौपदी की लाज रखी। तब से रक्षाबंधन का पर्व मनाने का चलन चला आ रहा है।
हुमायूं ने की थी रानी कर्णावती की रक्षा
मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं। रानी कर्णावती को जब बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्वसूचना मिली तो वह घबरा गई। रानी कर्णावती ने अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूं को राखी भेजी थी। हुमायूं ने राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंच कर बहादुरशाह के विरुद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्णावती और उसके राज्य की रक्षा की।
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