भारतवर्ष में एक से बढ़कर एक वीर योद्धा हुए. जिन्होंने अपने देश के लिए बड़ी बड़ी लड़ाइयां लड़ कर भारत के इतिहास के सुनहरे पन्नों में अपना नाम दर्ज कराया। आज हम जिस वीर योद्धा की बात कर रहे हैं वह मराठा साम्राज्य से जुड़े हुए हैं। जी हां वीर छत्रपति शिवाजी राव के बारे में तो आपने सुना ही होगा उनके काल में उन्होंने ढेरों लड़ाइयां लड़ी और उन्हें जीतकर कई के लिए अपने नाम कर लिए। आज हम उनके ही सबसे अजीज दोस्त तानाजी मालुसरे की बात कर रहे हैं। तो आइए जानते हैं तानाजी मालुसरे जैसे वीर योद्धा के बारे में विस्तार से।
मराठा साम्राज्य में वीर योद्धा तानाजी मालुसरे का जन्म 1600 ईसवीं में हुआ था। उनका जन्म महाराष्ट्र के ही एक छोटे से गांव जो सातारा जिले में आता था उस गांव का नाम गोदोली में हुआ था। तानाजी के पिता सरदार कलोजी और माता पार्वती बाई कलोजी थी वे दोनों ही एक हिंदू कोली परिवार से ताल्लुक रखते थे। तानाजी को बचपन से ही बच्चों की तरह खेल खेलने का नहीं बल्कि तलवारबाजी का शौक रहा था जिसके चलते वे छत्रपति शिवाजी से मिले और बचपन से ही उनके मित्र बन गए। उनकी वीरता के चर्चे दूर-दूर तक हुआ करते थे और उनकी वीरता के चलते ही उन्हें मराठा साम्राज्य में एक उच्च पद के रूप में मुख्य सूबेदार के रूप में नियुक्त कर दिए गए।
तानाजी और शिवाजी की मित्रता बचपन से ही इतनी घनिष्ठ थी कि दोनों एक-दूसरे के बिना कोई भी काम करते नहीं थे भले ही वे युद्ध में लड़ना क्यों ना हो। औरंगजेब के खिलाफ उन दोनों ने युद्ध में हिस्सा लिया और युद्ध के दौरान ही औरंगजेब के द्वारा उन्हें बंदी बना लिया गया। बाद में दोनों ने मिलकर योजना बनाई और औरंगजेब के किले से वे दोनों एक साथ भाग निकले।
जीजाबाई की प्रतिज्ञा का किया सम्मान
उस समय शिवाजी की ओर से तानाजी को यह संदेश मिला कि माता जीजाबाई ने यह प्रतिज्ञा की है कि जब तक वह कोडाना किले को मराठा साम्राज्य में शामिल नहीं कर लेती तब तक वह अन्न जल का त्याग करती हैं। उनकी यह प्रतिज्ञा तुरंत ही शिवाजी द्वारा तानाजी तक पहुंचाई गई और जैसे ही तानाजी को यह बात पता चली वह घर में चल रही अपने पुत्र के विवाह उत्सव की तैयारियों को छोड़कर माता जीजाबाई की प्रतिज्ञा को पूरी करने निकल पड़े।
पुत्र का विवाह छोड़ निकले युद्ध पर
जब तानाजी ने युद्ध के लिए प्रस्थान करने की योजना बनाई तब उस समय उनके पुत्र रायबा का विवाह होने वाला था। परंतु देश के लिए लड़ने वाले सैनिकों को अपने परिवार से कहीं अधिक अपना देश प्यारा होता है वह अपने देश को ही अपना परिवार मानकर प्राथमिकता देते हैं ऐसा ही कुछ तानाजी ने किया जब वह अपने बेटे के विवाह को छोड़कर युद्ध की ओर प्रस्थान कर गए। तानाजी और उनकी सेना में इस कदर स्वराज का भूत चढ़ा हुआ था कि वे किसी भी हालत में कोंडाना किले को अपने नाम करना चाहते थे।
रात के काले घने अंधेरे में उन्होंने कोंडाणा किले को अपने सैनिकों के साथ मिलकर चारों तरफ से घेर लिया और धीरे-धीरे सारे सैनिक महल के अंदर जा घुसे। उस किले की बनावट कुछ इस प्रकार थी कि उसमें किसी का भी घुस पाना बेहद मुश्किल था। लेकिन तानाजी की चतुर और चालाक बुद्धि की मदद से उन्होंने अपनी पूरी सेना के साथ मिलकर उस किले पर घमासान आक्रमण कर दिया। उनके इस आक्रमण ने मुगल सैनिकों को पलभर के लिए भी समझने का मौका नहीं दिया।
मुगल सैनिकों को इस बात का अंदाजा तक नहीं हुआ कि उन पर यह हमला कैसे और किस तरफ से हुआ है वे इस बात को समझ पाते इससे पहले ही मराठा सेना उन पर पूरी तरह से टूट पड़ी। बहुत ही वीरता के साथ तानाजी ने यह युद्ध लड़ा और आखिर में युद्ध लड़ते लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। अपने जीवन काल के दौरान उन्होंने छत्रपति शिवाजी के साथ बहुत युद्ध लड़े भी और उनमें जीत भी हासिल की।
सिंह गढ़ का यह युद्ध उन्होंने अपनी जान देकर जीत लिया और इतिहास के सुनहरे पन्नों में अपना नाम भी दर्ज करा लिया। जब यह वीरगति को प्राप्त हो गए तो यह युद्ध वहीं पर नहीं थमा उनके मामा और उनके भाई ने मिलकर इस युद्ध को पूरा लड़ा और आखिर में जीत प्राप्त करके कोंडाणा किले पर अपना स्वामित्व हासिल कर लिया और वहां पर मराठा झंडा लहरा कर अपनी जीत को पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ फैला दिया। उनकी मृत्यु की बात जब शिवाजी तक पहुंची तब उन्होंने बेहद अधिक शौक के साथ यही कहा कि किला तो जीत लिया परंतु हमने मराठा साम्राज्य का एक वीर शेर खो दिया।
तानाजी की याद में उस किले को सिंह गढ़ के किले के नाम से पहचान दी गई। तानाजी के युद्ध पराक्रम में उनका साथ उनके भाई सूर्या जी माला सूर्य और मामा शेलार ने उनका साथ दिया और उन दोनों की वीरता ने भी उन्हें इतिहास के सुनहरे पन्नों में रोशन कर दिया। कोंडाना किले की इस लड़ाई को जीतने के लिए तानाजी ने 5000 मुगल सैनिकों के लिए सिर्फ 342 सैनिक चुने जिन्होंने अपनी वीरता का पराक्रम दिखाते हुए उसके लिए पर अपना विजय परचम लहराया।
मराठा साम्राज्य के वीर सैनिक सदैव ही देश के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं उन्हीं में से एक तानाजी मालेसुर भी रहे। तानाजी के इस पराक्रम को सराहाते हुए शिवाजी ने पुणे और उसके आसपास के क्षेत्र में उनकी कई सारी प्रतिष्ठाएँ स्थापित कराई। जो आज भी इतिहास के सुनहरे पन्नों को रोशन करती हैं और वहां पर रहने वाले लोगों को गर्व व सम्मान से जीने का हक देती है। तानाजी की जीत के बाद उनको सम्मान व श्रद्धांजलि देते हुए पुणे में स्थित वाकडेवाडी’ नामक स्थान का नाम बदलकर ‘नरबीर तानाजी’ रखा गया।
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