02 फ़रवरी 2014

वैश्वीकरण का सत्य स्वरुप

जब मेरे देश में मेरे लिए और दूसरे देश में वहाँ के व्यक्ति के लिए सबसे उत्तम विकल्प सुरक्षित हो, तत्पश्चात यदि इन दोनों विकल्पों में कोई सामंजस्य स्थापित हो, केवल तभी इसे वैश्वीकरण या globalization माना जा सकता है। इसके विपरीत यदि एक दूसरे के देश में जाने का उद्देश्य केवल उस देश के सर्वोत्तम विकल्प का दोहन हो, ऐसी स्थिति को वैश्वीकरण नहीं बल्कि इसके नाम पर आर्थिक शोषण कहा जायेगा जो कि आजकल विकासशील देशों में हो रहा है।

उदाहरणार्थ, मैं अपने देश में अपने संसाधनों का उपयोग कर व्यापार या कृषि (व्यवसाय के सर्वोत्तम विकल्प) कर सकता हूँ। अब यदि कोई विदेशी कंपनी यहाँ आकर उन्हीं संसाधनों का दोहन करे तो ऐसे में कृषि और व्यापार के मार्ग कम या बंद हो जायेंगे। फिर जो विकल्प रह जायेगा वो नौकरी या दासता का होगा जो सबसे अधम श्रेणी का है। वह अकेली कंपनी कई हज़ार लोगों का लाभांश अकेले ही देश से बाहर ले जाएगी जिससे उसका देश बहुत अमीर और मेरा देश बहुत ही गरीब हो जायेगा! और यही हो भी रहा है!

इसके विपरीत यदि ऐसा होता कि हम अपने संसाधनों से पोषित होते और अन्य देश अपने संसाधनों से तथा फिर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार होता तो वह होता असली वैश्वीकरण।

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