भारत की धरती का यह गौरवशाली इतिहास रहा हैं कि वक़्त के मुताबिक़ इस मिटटी से अनाज के साथ साथ कई क्रांतिकारी पैदा हुए हैं !!! महाभारत काल से लेकर आज तक इस मिटटी ने न जाने कितने भगतसिंह , सुखदेव , राजगुरु को उगला और निगला हैं !!!
एक और जहाँ इस मिटटी की छाती नेहरु सरीखे जयचन्दो को लेकर टीसती हैं वही जब जब क्रांतिकारीयो के जन्म और बलिदान की तिथिया आती हैं , इस मिटटी की छाती से हुक उठती हैं , और यही हुक आज के युवा क्रांतिकारीयो में भी उठती हैं , और उसी हुक को महसूस करने वाले आज के क्रांतिकारी वीरो की इन्ही गाथाओ से अपना मार्गदर्शन करते हुए उन्ही क्रांतिकारीयो के अधूरे ख्वाब को पूरा करने का संकल्प लिए हुए हैं !!!
पहले ब्रितानीयो ने हम पर राज किया और अब इतालवी हमारी जिन्दगी पर , हमारी दिनचर्या पर ,हमारी रोटी पर , हमारी बेटी पर , हमारी साँसों पर हावी हैं और हम ????
हम सहे जा रहे हैं इनके जुल्मोसितम !!!! खैर - आज फिर माँ भारती ने अपने ही एक ऐसे
ही पुत्र की जन्मतिथि पर हुंकार भरी हैं जिसका नाम बिटिश फ़ौज की नसले कभी ना भूल सकी !!!! वो नाम हैं '' मंगल पांडे '' , था इसलिए नही लगाऊंगा क्योकि शहीद कभी नही मरते वो अमर
होते हैं !!! मंगल पांडे जी के जन्म की तिथियों को लेकर भी कई भ्रांतियों ने जन्म लिया हैं , कोई इनका जन्म सो जनवरी १८३१ बताता हैं , तो वही इनके माता पिता के नामो को लेकर भी संशय हैं ,कोई इनके पिता का नाम सुद्र्ष्टि पांडे एवं माता का नाम जानकी देवी बताता हैं , परन्तु यदि इतिहास के
पन्नो से थोड़ी धुल उठाकर देखा जाए तो साक्ष्यो के आधार पर क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमति अभय रानी था | वे , कोलकाता के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में ३४ वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की पैदल सेना के 1446 नम्बर के सिपाही थे।
भारत की आजादी की पहली लड़ाई अर्थात 1857 के विद्रोह की शुरुआत उन्हीं के विद्रोह से हुई। विद्रोह का प्रारम्भ एक बंदूक की वजह से हुआ। सिपाहियों को पैटऱ्न १८५३ एनफ़ील्ड बंदूक दी गयीं जो कि ०.५७७ कैलीबर की बंदूक थी तथा पुरानी और कई दशकों से उपयोग मे लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले मे शक्तिशाली और अचूक थी। नयी बंदूक मे गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी। नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पडता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पडता था। कारतूस का बाहरी आवरण मे चर्बी होती थी जो कि उसे नमी अर्थात पानी की सीलन से बचाती थी।
सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस मे लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से
बनायी जाती है। यह हिन्दू और मुसलमान सिपाहियों दोनो की धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध था।
ब्रितानी अफ़सरों ने इसे अफ़वाह बताया और सुझाव दिया कि सिपाही नये कारतूस बनाये जिसमे बकरे या मधुमक्क्खी की चर्बी प्रयोग की जाये। इस सुझाव ने सिपाहियों के बीच फ़ैली इस अफ़वाह को और पुख्ता कर दिया। दूसरा सुझाव यह दिया गया कि सिपाही कारतूस को दांतों से काटने
की बजाय हाथों से खोलें। परंतु सिपाहियों ने इसे ये कहते हुए अस्विकार कर दिया कि वे
कभी भी नयी कवायद को भूल सकते हैं और दांतों से कारतूस को काट सकते हैं।
तत्कालीन ब्रितानी सेना प्रमुख (भारत) जार्ज एनसन ने अपने अफ़सरों की सलाह को दरकिनार हुए इस कवायद और नयी बंदूक से उत्पन्न हुई समस्या को सुलझाने से मना कर दिया।२९ मार्च,
१८५७ को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय ने रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया। जनरल जान हे एरसेये के अनुसार मंगल पाण्डेय किसी प्रकार के धार्मिक पागलपन मे थे जनरल ने ज़मीदार ईश्वरी प्रसाद को मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया। सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया।
मंगल पाण्डेय ने अपने साथीयों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से अपनी प्राण लेने का प्रयास करी। परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुये। ज़मीदार ईश्वरी प्रसाद को भी मृत्यु दंड दे दिया गया और उसे भी २२ अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी।
सारी रेजीमेण्ट को समाप्त कर दिया गया और सिपाहियों को निकाल दिया गया। सिपाही शेख पलटु
की पदोन्नति कर बंगाल सेना में ज़मीदार बना दिया गया।अन्य रेजीमेण्ट के सिपाहियों को यह
दंड बहुत ही कठोर लगा।
रेजीमेण्ट को समाप्त करने और सिपाहियों को बाहर निकालने ने विद्रोह के
प्रारम्भ होने मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, असंतुष्ट सिपाही बदला लेने की इच्छा के साथ अवध
लौटे और विद्रोह ने उने यह अवसर दे दिया।अंग्रेज़ों ने 1757 में प्लासी का युद्ध जीतने के कुछ साल बाद भारत की पहली फ़ौजी छावनी कलकत्ता से कुछ दूर हुगली (गंगा) नदी के तट पर बसे बैरकपुर में क़ायम की और सैनिकों के रहने के लिए बैरकें बनवाईं. मंगल पांडे उन्हीं सैनिकों में से एक थे जिन्होंने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ भारी असंतोष के माहौल में 27 मार्च 1857 को एक अफ़सर पर गोली चला दी और अपने साथियों से विद्रोह की अपील की. और इस तरह क्रांतिकारी मंगल पांडे ने ब्रिटिश सरकार की चाल को नाकाम कर दिया !!!
एक और जहाँ इस मिटटी की छाती नेहरु सरीखे जयचन्दो को लेकर टीसती हैं वही जब जब क्रांतिकारीयो के जन्म और बलिदान की तिथिया आती हैं , इस मिटटी की छाती से हुक उठती हैं , और यही हुक आज के युवा क्रांतिकारीयो में भी उठती हैं , और उसी हुक को महसूस करने वाले आज के क्रांतिकारी वीरो की इन्ही गाथाओ से अपना मार्गदर्शन करते हुए उन्ही क्रांतिकारीयो के अधूरे ख्वाब को पूरा करने का संकल्प लिए हुए हैं !!!
पहले ब्रितानीयो ने हम पर राज किया और अब इतालवी हमारी जिन्दगी पर , हमारी दिनचर्या पर ,हमारी रोटी पर , हमारी बेटी पर , हमारी साँसों पर हावी हैं और हम ????
हम सहे जा रहे हैं इनके जुल्मोसितम !!!! खैर - आज फिर माँ भारती ने अपने ही एक ऐसे
ही पुत्र की जन्मतिथि पर हुंकार भरी हैं जिसका नाम बिटिश फ़ौज की नसले कभी ना भूल सकी !!!! वो नाम हैं '' मंगल पांडे '' , था इसलिए नही लगाऊंगा क्योकि शहीद कभी नही मरते वो अमर
होते हैं !!! मंगल पांडे जी के जन्म की तिथियों को लेकर भी कई भ्रांतियों ने जन्म लिया हैं , कोई इनका जन्म सो जनवरी १८३१ बताता हैं , तो वही इनके माता पिता के नामो को लेकर भी संशय हैं ,कोई इनके पिता का नाम सुद्र्ष्टि पांडे एवं माता का नाम जानकी देवी बताता हैं , परन्तु यदि इतिहास के
पन्नो से थोड़ी धुल उठाकर देखा जाए तो साक्ष्यो के आधार पर क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमति अभय रानी था | वे , कोलकाता के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में ३४ वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की पैदल सेना के 1446 नम्बर के सिपाही थे।
भारत की आजादी की पहली लड़ाई अर्थात 1857 के विद्रोह की शुरुआत उन्हीं के विद्रोह से हुई। विद्रोह का प्रारम्भ एक बंदूक की वजह से हुआ। सिपाहियों को पैटऱ्न १८५३ एनफ़ील्ड बंदूक दी गयीं जो कि ०.५७७ कैलीबर की बंदूक थी तथा पुरानी और कई दशकों से उपयोग मे लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले मे शक्तिशाली और अचूक थी। नयी बंदूक मे गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी। नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पडता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पडता था। कारतूस का बाहरी आवरण मे चर्बी होती थी जो कि उसे नमी अर्थात पानी की सीलन से बचाती थी।
सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस मे लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से
बनायी जाती है। यह हिन्दू और मुसलमान सिपाहियों दोनो की धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध था।
ब्रितानी अफ़सरों ने इसे अफ़वाह बताया और सुझाव दिया कि सिपाही नये कारतूस बनाये जिसमे बकरे या मधुमक्क्खी की चर्बी प्रयोग की जाये। इस सुझाव ने सिपाहियों के बीच फ़ैली इस अफ़वाह को और पुख्ता कर दिया। दूसरा सुझाव यह दिया गया कि सिपाही कारतूस को दांतों से काटने
की बजाय हाथों से खोलें। परंतु सिपाहियों ने इसे ये कहते हुए अस्विकार कर दिया कि वे
कभी भी नयी कवायद को भूल सकते हैं और दांतों से कारतूस को काट सकते हैं।
तत्कालीन ब्रितानी सेना प्रमुख (भारत) जार्ज एनसन ने अपने अफ़सरों की सलाह को दरकिनार हुए इस कवायद और नयी बंदूक से उत्पन्न हुई समस्या को सुलझाने से मना कर दिया।२९ मार्च,
१८५७ को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय ने रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया। जनरल जान हे एरसेये के अनुसार मंगल पाण्डेय किसी प्रकार के धार्मिक पागलपन मे थे जनरल ने ज़मीदार ईश्वरी प्रसाद को मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया। सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया।
मंगल पाण्डेय ने अपने साथीयों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से अपनी प्राण लेने का प्रयास करी। परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुये। ज़मीदार ईश्वरी प्रसाद को भी मृत्यु दंड दे दिया गया और उसे भी २२ अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी।
सारी रेजीमेण्ट को समाप्त कर दिया गया और सिपाहियों को निकाल दिया गया। सिपाही शेख पलटु
की पदोन्नति कर बंगाल सेना में ज़मीदार बना दिया गया।अन्य रेजीमेण्ट के सिपाहियों को यह
दंड बहुत ही कठोर लगा।
रेजीमेण्ट को समाप्त करने और सिपाहियों को बाहर निकालने ने विद्रोह के
प्रारम्भ होने मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, असंतुष्ट सिपाही बदला लेने की इच्छा के साथ अवध
लौटे और विद्रोह ने उने यह अवसर दे दिया।अंग्रेज़ों ने 1757 में प्लासी का युद्ध जीतने के कुछ साल बाद भारत की पहली फ़ौजी छावनी कलकत्ता से कुछ दूर हुगली (गंगा) नदी के तट पर बसे बैरकपुर में क़ायम की और सैनिकों के रहने के लिए बैरकें बनवाईं. मंगल पांडे उन्हीं सैनिकों में से एक थे जिन्होंने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ भारी असंतोष के माहौल में 27 मार्च 1857 को एक अफ़सर पर गोली चला दी और अपने साथियों से विद्रोह की अपील की. और इस तरह क्रांतिकारी मंगल पांडे ने ब्रिटिश सरकार की चाल को नाकाम कर दिया !!!
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