किसान भाइयों का खून चूसने वालों शर्म करो ***
इस साल पहली जून तक भारत में '842 लाख टन' अतिरिक्त खाद्यान्न जमा था। यह इतनी
भारी मात्रा है कि अगर एक के ऊपर एक बोरियां लगा दी जाएं तो आप इनसे होकर
'चांद' तक पहुंच जाएंगे। इसके बाद भी 220 लाख टन खाद्यान्न बचा रह जाएगा।
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लेकिन फिर भी...............भारत में हर रोज '32 करोड़' लोग भूखे सोते हैं और
47 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इस साल खाद्यान्न की बंपर पैदावार से
भारत के पास देशवासियों का पेट भरने का ऐतिहासिक अवसर है। इस अतिरिक्त
खाद्यान्न को जरूरतमंदों और भुखमरी के शिकार लोगों के घरों तक पहुंचाने के
कार्यक्रम के जरिये हम न केवल भारत से भुखमरी का खात्मा कर देंगे, बल्कि विश्व
में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या भी एक-तिहाई कम कर देंगे। आखिरकार, भारत
में विश्व के कुल भूखे लोगों की एक-तिहाई आबादी रहती है। वर्ल्ड हंगर रिपोर्ट
के अनुसार भारत 81 देशों की सूची में 67वें स्थान पर है। जहां तक भूख से जंग
की बात है तो रवांडा भी भारत से आगे है।
इतने खाद्यान्न से हर भारतीय का पेट भरा जा सकता है। भारतीयों का पेट भरने के
बजाय खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री केवी थॉमस इस खाद्यान्न से छुटकारा पाने
के उपाय तलाश रहे हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में 50 लाख टन खाद्यान्न
आवंटित करने के बाद अब वह गेहूं के निर्यात की संभावना तलाश रहे हैं और वह भी
घाटे पर। 778 रुपये प्रति क्विंटल के घाटे पर खाद्य और उपभोक्ता मामलों के
मंत्री 20 लाख टन गेहूं ईरान को निर्यात करने जा रहे हैं। निर्यात की दर
किसानों को दिए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम रखी गई है। यहां तक कि गरीबी
रेखा के नीचे रहने वालों को जिस दर पर गेहूं बेचा जाता है, यह दर उससे भी कम
है।
भंडारण की अपनी अक्षमता को जाहिर करते हुए थॉमस पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि
66 लाख टन गेहूं के लिए कोई सही भंडारण क्षमता नहीं है, इसलिए वह खुले में
पड़ा हुआ है और बारिश में सड़ रहा है। असलियत यह है कि 270 लाख टन गेहूं खुले
में पड़ा हुआ है और इसे पालीथीन की पन्नी से ढका हुआ है।
अगर मंत्री के अनुसार पालीथीन से ढका गेहूं वैज्ञानिक पद्धति से भंडारण है तो
इसका उनके पास क्या जवाब है कि शेष बचे हुए 66 लाख टन गेंहू के लिए सरकार
पालीथीन का इंतजाम क्यों नहीं कर पाई है?
सरकार किसानों की आजीविका पर चोट करने के साथ-साथ विदेशों से भारी मात्रा में
खाद्यान्न मंगाने की कोशिश कर रही है। पेट्रोलियम पदार्थो के भारी आयात में
विदेशी मुद्रा भंडार की बड़ी राशि गंवाने वाला भारत अगर खाद्यान्न भी आयात
करने लगेगा तो इसकी क्या हालत होगी ? ऐसा होने पर भुखमरी के शिकार लोगों की
संख्या और बढ़ जाएगी। खाद्यान्न के बढ़ते दाम गरीबों की ही नहीं, मध्यम वर्ग
की भी कमर तोड़ देंगे।
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