25 जुलाई 2016

60 सालों बाद देश में दिखा ऐतिहासिक नजारा, मोदी ने बदली भारतीय राजनीति की तस्‍वीर

60 सालों बाद देश में दिखा ऐतिहासिक नजारा, मोदी ने बदली भारतीय राजनीति की तस्‍वीर, घबराए विपक्षी, रच रहे षडयंत्र.. !
देश की राजनीति बदल चुकी है। देश की दशा और दिशा भी बदल गई है। पारंपरिक राजनीति की जगह एक नई राजनीति ने जन्म ले लिया है। मीडिया का स्वरूप बदल चुका है। लेकिन इस सबके बीच एक बड़ा बदलाव जो पूरे देश में नजर आ रहा है वो ये है कि पूरा का पूरा देश दो भागों में बंटा हुआ दिखाई देता है। इसकी वजह क्या है। मैं सीधे-सीधे कुछ बिंदुओं की तरफ आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहूंगा।
देश में सालों बाद ऐसा पहली बार हो रहा है कि कोई भ्रष्टाचार की बात नहीं करता। सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर कोई आलोचना नहीं होती, विपक्षी पार्टियां आलोचना कर रही हैं मोदी के महंगे सूट की या फिर उनके विदेश दौरे की।
ऐसा पहली बार हो रहा है जब देश के तमाम धुर विरोधी राजनीतिक दल भी एक दूसरे से गलबहियां कर रहे हैं। मसलन कांग्रेस का लेफ्ट दलों से मिलना, पारंपरिक राजनीति का विरोध कर दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने वाले केजरीवाल का नीतीश-लालू के साथ मिलना, कभी एक दूसरे से कोसों दूर रहने वाले लालू-नीतीश का बिहार में मिलकर चुनाव लड़ना। कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी के विरोध में तमाम दल एक दूसरे से जिस भी तरीके की मदद ले/दे सकते हैं, ले/दे रहे हैं।
दल तो दल, मोदी के विरोध में जो भी चीजें सामने आ रही हैं, विपक्षी पार्टियां उसका भी साथ लेने से चूक नहीं रही हों, चाहे वो देशहित के भी खिलाफ क्यों न हो। JNU मुद्दा हो या जाकिर नायक, कश्मीर के मुद्दे पर भी तमाम दल मोदी विरोध में कहीं न कहीं देश विरोध में ही खड़े नजर आए।
हार्दिक पटेल और जाट आरक्षण के मुद्दे पर भी जिस तरीके से तमाम दलों का रुख रहा, वो भी सवाल खड़ा करने वाला है।
इन घटनाओं को देखकर आपको ये तो समझ में आ गया होगा कि इस देश के तमाम राजनीतिक दल किसी भी सूरत में नरेंद्र मोदी का विरोध करना चाहते हैं। वो हर उस छोटे से छोटे मुद्दे को देश का सबसे बड़ा मुद्दा बनाना चाहते हैं, जिससे मोदी की छवि धूमिल की जा सके। दया शंकर का एपिसोड ताजा उदाहरण है। अगर दया शंकर को पार्टी ने निकाल दिया। उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू हो गई, ऐसे में फिर भी इस मुद्दे को देश का सबसे बड़ा मुद्दा बना देना और बाकी बड़े मुद्दों से ध्यान भटकाना इसकी एक मिसाल है।
दरअसल, इसके पीछे की कहानी ये है कि देश की राजनीतिक सांस्कृति कमजोर हो चुकी है। पूर्ण बहुमत हासिल करने के बाद भी ऐसा लगता है कि तमाम दल ये नहीं चाहते कि मोदी को पांच साल का वक्त मिले। अब इसकी जो वजह मुझे समझ में आती है, वो इस प्रकार है।
1- मोदी देश में और सरकार में जिस प्रकार की व्यवस्था बनाने की कोशिश कर रहे हैं, वो किसी भी राजनीतिक दल और नेताओं के लिए कांटों भरा सेज जैसा होगा। इतनी पारदर्शिता होगी कि सब कुछ शीशे की तरह साफ दिखेगा।
2- मोदी राज में खाने खिलाने की व्यवस्था पूरी तरह से खत्म होती जा रही है। मतलब भ्रष्टाचार को लेकर जिस तरीके से जीरो टॉलरेंस का स्टैंड लिया गया है। वो कुछ नेताओं को हजम नहीं होगा। वजह सिर्फ ये है कि जिस सांसद पद का चुनाव लड़ने के लिए लाखों करोड़ों रुपये खर्च हो जाते हैं। अगर सांसद बनने के बाद भी पैसे न कमा पाए तो फिर इनके अस्तित्व पर ही खतरा पैदा हो जाएगा।
3- इनकी व्यवस्था में नेता सीधे-सीधे जनता के सामने जिम्मेदार होते जा रहे हैं। जिस प्रकार से ट्वीटर,फेसबुक और सोशल मीडिया में आम लोगों की भागीदारी को मजबूत बनाने में सरकार भी शामिल हुई है,उससे आने वाले दिनों में चाहे जो भी नेता सत्ता में रहें, उनके लिए आम आदमी के सवालों से बचना मुश्किल होगा।
4- मीडिया के लोग प्रधानमंत्री मोदी से इसलिए नाराज हैं क्योंकि उन्होंने मीडिया के लोगों का मुफ्त में दौरा बंद करा दिया है। खबरों में संवेदनशीलता लाने के लिए सिर्फ सरकारी मीडिया और न्यूज एजेंसी को ही इजाजत दी जाती है।
5- मोदी सरकार किसी बिचौलिए की जगह सीधे आम जनता से खुद को कनेक्ट करती है। तमाम बड़े कार्यक्रम इसके गवाह हैं।
6-लोग भले ही आरोप लगाते हों कि मोदी ने हर जगह कब्जा जमा लिया है, लेकिन सच्चाई ये है कि इस देश की जनता ने मोदी का चेहरा देखकर ही पूर्ण बहुमत सौंपा है। जाहिर है वो हर जगह अपनी कड़ी नजर रखना चाहते हैं।
सवाल ये है कि जो मोदी दिन के 24 घंटे, हफ्ता के सातों दिन, साल के 365 दिन देश सेवा में दे रहे हैं। इस बात को उनकी ताकत के बजाए कमजोर कड़ी बनाकर पेश करने की कोशिश की जा रही है। जबकि अगर सही तरीके से देखें तो इसकी हर किसी को तारीफ करनी चाहिए।

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