02 अगस्त 2016

चरक कहते हैं, कोई बीमारी जहाँ से फैली है उसका समाधान वहीं मिलेगा

आतंकवाद आधुनिक विश्व की सबसे गंभीर बीमारी है। कोढ़ है यह मानवता का। जितना जल्दी संभव, इसका समाधान निकलना चाहिये।हर एक दिन की देरी में कई सौ ज़िंदगियों की तबाही है। इस बीमारी की जड़ से कोई अनजान नहीं। तूफान आने पर शुतुरमुर्ग रेत में भरसक गर्दन डाल ले, उसको मरना ही पड़ता है। ठीक ऐसे ही, आतंकवाद की जड़ से अवगत होकर भी शुतुरमुर्ग बनने पर वही सब होगा, जो फ्रांस में हो रहा है।
जैसे ही कहीं बम फूटता है या किसी और प्रकार का हमला होता है, कुछ लोग एक रटा-रटाया और बरसों पुराना जुमला उछालने लग जाते हैं कि आतंकवाद का मज़हब नहीं होता। यहाँ पर चोर की दाढ़ी में तिनका वाली कहावत चरितार्थ है।
कल की बताता हूँ। सुबह उठकर कुछ पढ़ने लग गया था। अखबार देखे नहीं थे तबतक, फेसबुक भी खोला नहीं था, टीवी मैं रखता नहीं, तो नीस हमले से अनभिज्ञ था। ऑफिस जाते समय कल इसी समय फोन उठाया तो देखा कई सारे कॉल आये हुए हैं। पहले भैया को कॉलबैक किया। उन्होंने नीस हमले की सूचना दी। विस्तृत जानकारी माँगे। हम बोले कि ऑफिस पहुँचकर देते हैं। ऑफिस जाकर फोन किये तो सबसे पहला सवाल यह कि हमलावर मुस्लिम ही था न। भर दिन यह सवाल होता रहा। इस सवाल की हर आवृत्ति बीमारी की जड़ बता रही थी। ये दरअसल सवाल थे ही नहीं, जवाब था, लोकमत था।
तो ऐसा कैसे हो गया मुसलमान? इस्लाम क्यों आतंकवाद का खाद-पानी हो गया? बात हालाँकि इसपर होनी चाहिये, पर हम बात करते हैं कि...। बात करते कहाँ हैं, फतवा दे देते हैं कि आतंकवाद का मज़हब नहीं होता और इस्लाम शांति का मज़हब है। तो बात वह करिये, जो होनी चाहिये।
समस्या यह है कि हम समस्या को देखना नहीं चाहते। कोई भी समाज-धर्म कभी भी आदर्श नहीं हो सकता। न मनु आदर्श हैं और न ही मुहम्मद। मनु ने जो कहा, वह अपने समय में प्रासंगिक। पर मनु की खींची लकीर को लेकर कभी भी हिंदू समाज फकीर न बना रहा। जैसे-जैसे समय बीता, समझ बढ़ी, हिंदू समाज ने सतत सुधार किया। सारे सुधार अंदर से ही आये। इसाइयों ने भी वर्जनाएँ तोड़ी। हाँ ठीक है, पुरातन यूरोप ने सुकरात को और मध्य कालीन यूरोप ने कॉपरनिकस को दिया ज़हर, पर आज लोग सुकरात-कॉपरनिकस को जान-मान रहे हैं, न कि ज़हर देने वाली रिजिड मानसिकता को। इस्लाम यहीं पर चूक गया।
इधर ही पढ़ रहा था Thighing. बड़ी घिनौनी प्रथा है। अरबी में क्या तो नाम भी था। इस शब्द का मतलब है किसी स्त्री के जांघों के बीच में जननांग रगड़ कर स्खलित होना। इस्लाम का इससे गहरा संबंध है। कहते हैं कि मुहम्मद ने आयशा से तब शादी किया जब वह महज छह साल की थी। कहते यह भी हैं कि उसने बच्ची से पहला संभोग तब किया जब वह महज नौ साल की थी। बीच के तीन साल वह Thighing किया करता था। आ रही है न घिन्न? अब थोड़ा और घिन्नवाता हूँ। शीर्ष शियागुरू अयातुल्लाह खुमैनी की कहानी है। ईरान के लगभग सर्वेसर्वा रहे हैं। किसी समारोह में थे। ईरान का ही एक बिजनेस मैन अपनी पाँच-सात साल की बच्ची के साथ था उस समारोह में। खुमैनी उसे देख गड़बड़ा गये। सीधा प्रस्ताव दे डाला बच्ची के बाप को। बाप सहर्ष तैयार। भर रात बच्ची की सिसकियाँ इमारत की दीवारों से टकराकर जमींदोज होती रहीं। बाद में खुमैनी ने इसे मुहम्मद-आयशा प्रसंग उद्धृत कर जस्टिफाय कर दिया। सुन्नीओं में सऊदी के ग्रैंड मुफ्ती सर्वोच्च हैं। इस बात पूछे जाने पर उसने भी इसे हलाल करार दिया। साथ में यह भी जोड़ा कि बच्चियों के लिये शादी की कोई उम्र तय किया जाना हराम है। उससे कभी भी शादी की जा सकती है। हाँ प्रॉपर संभोग के लिये उस अवस्था तक इंतज़ार करना होगा जबतक कि वह अपने पति का वज़न संभालने लायक न हो जाये। तबतक Thighing के जरिये स्खलित होना चाहिए।
एकबार कुछ मुस्लिम मित्रों से मैंने इसपर बात की। कुछ चुप्प रहे तो कुछ ने कहा कि यह सब हदीस-बुखारी आदि में बाद में साजिशन-इरादतन जोड़ा गया। इसकी भी संभावना है। हालाँकि तबतक लिपि विकसित हो चुकी थी और नानाविधि किताबें लिखी जानें लगी थी। हाँ, मनुस्मृति के समय श्रुत परंपरा थी। इसमें प्रदुषण की अपेक्षाकृत अधिक आशंका है। अब तुलनात्मक देखिये। मनुस्मृति कितने हिंदू घरों में उपलब्ध है? कितने लोगों ने पढ़ा है इसे? हम खुद यदि इतिहास के छात्र न होते तो शायद ही पढ़ते। इसके उलट मुस्लिम बच्चों को बचपने से मदरसे-उलेमाओं के जरिये कुड़ा सब घुट्टी बनाकर दिया जाता है।
इसी कचड़ाघुट्टी का परिणाम है कि जहाँ आदर्श दाराशिकोह होना चाहिये, औरंगजेब-गोरी-गजनवी आदर्श हो जाता है। पूजा मुस्तफा कमालपाशा को जाना चाहिये, पूजा ओसामा-जवाहिरी-अबु बकर की हो जाती है। भावना शाह फैसल ले जुड़नी चाहिये, जुड़ बुरहान से जाती है। इसका भी कारण है। इस्लाम ने कभी देशप्रेम सिखाया ही नहीं। काल्पनिक अल्लाह को सबसे ऊपर रखकर आसमानी किताब के जरिये सबको अरब का मानसिक टट्टू बनाकर रख दिया। यही कारण है कि हिंदुस्तान की जमीन पर जन्मा, यहीं खाया-हगा, हिंदुस्तान की ही मिट्टी को मौके-बेमौके लाल कर देता है। फ्रांस में जन्मा, वहीं खाया-हगा एक ट्युनिशियाई चौरासी लोगों को ट्रक से कुचल देता है। भरे हैं उदाहरण। जितना मन चाहे देखो।
बाकी, अब बस दो बात। गलत को जस्टिफाय करना बंद करो। अपनी गलती स्वीकारो, सुधार शुरू हो जाएगा। यह बात इस्लाम के लिये।
दूसरी बात विश्वभर के लिये कि चरक की बात मानो। सुखी-स्वस्थ रहोगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

नीचता की पराकाष्ठा 😠 अश्लील होती महेंदी रस्म..

विवाह की रुत पुनः आ गई है ।  संस्कारों के नाम पर हमारे समाज में अश्लीलता का पदार्पण हो चुका है । नई नई कुप्रथाएँ जन्म ले रहीं हैं ।  ऐसे ही ...