27 नवंबर 2023

गुरु नानक देव जी के अनमोल विचार और सिद्धांत

गुरु नानक देव जी के कुछ प्रमुख सिद्धांत एवं उपदेश
जो संत समाज को दिशा देने के लिए अवतार लेते हैं वे शुरू से ही समाज की सामान्य परंपराओं से अलग हटकर सोचने का काम बचपन से ही शुरू कर देते हैं और यही कारण है की गुरु नानक देव जी का सोच, परंपरागत समाज के सोच से भिन्न था जो उनके उपदेशों एवं व्यवहार में देखने को मिलता है। उसमें से कुछ उपदेश एवं व्यवहार  इस प्रकार है-
(1) सतगुरुजी नानक देव जी की महानता के दर्शन बचपन से ही दिखने लगे थे। नानक देव जी ने- रूढ़िवादिता के विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत बचपन से ही कर दी थी, जब उन्हें 11 साल की उम्र में जनेऊ धारण करवाने की परंपरा का पालन किया जा रहा था। 
        जब पंडितजी बालक नानक देव जी के गले में जनेऊ धारण करवाने लगे तब उन्होंने उनका हाथ रोका और कहने लगे- 'पंडितजी, ऐसा कहते हैं कि जनेऊ पहनने से हम लोगों का दूसरा जन्म होता है, जिसको आप "आध्यात्मिक जन्म" कहते हैं तो जनेऊ भी किसी और किस्म का होना चाहिए, जो आत्मा को बांध सके। आप जो जनेऊ मुझे दे रहे हो वह तो कपास के धागे का है जो कि मैला हो जाएगा, टूट जाएगा, मरते समय शरीर के साथ चिता में जल जाएगा। फिर इस जनेऊ से आध्यात्मिक जन्म कैसे होगा? और उन्होंने जनेऊ धारण नहीं किया।
(2) बड़े होने पर नानक देव जी को उनके पिता ने व्यापार करने के लिए 2 रु. दिए और कहा- 'इन 2 रु. से सच्चा सौदा करके आओ। नानक देवजी सौदा करने निकले। रास्ते में उन्हें साधु-संतों की मंडली मिली। नानक देव जी ने उस साधु मंडली को 2 रु. का भोजन करवा दिया और लौट आए। पिताजी ने पूछा- क्या सौदा करके आए? उन्होंने कहा- 'साधुओं को भोजन करवाया। यही तो सच्चा सौदा है।
 (3)गुरु नानक देव जी जनता को जगाने के लिए और धर्म प्रचारकों को उनकी खामियां बतलाने के लिए अनेक तीर्थस्थानों पर पहुँचे और लोगों से धर्मांधता से दूर रहने का आग्रह किया। उन्होंने पितरों को भोजन यानी मरने के बाद करवाए जाने वाले भोजन का विरोध किया और कहा कि मरने के बाद दिया जाने वाला भोजन पितरों को नहीं मिलता। हमें जीते जी ही माँ-बाप की सेवा करना चाहिए
(4) एक बार कुछ लोगों ने नानक देव जी से पूछा- आप हमें यह बताइए कि आपके मत अनुसार हिंदू बड़ा है या मुसलमान, सतगुरुजी ने उत्तर दिया- अवल अल्लाह नूर उपाइया कुदरत के सब बंदे ।
 एक नूर से सब जग उपजया को भले को मंदे, अर्थात सब बंदे ईश्वर के पैदा किए हुए हैं, ना तो हिंदू कहलाने वाला रब की निगाह में कबूल है, ना ही  मुसलमान कहलाने वाला। रब की निगाह में,  वही बंदा ऊंचा है जिसका अमल नेक और उदारता पूर्ण हो, जिस प्रकार आग की एक चिंगारी सब कुछ स्वाहा कर देती है, उसी प्रकार परमात्मा का सिमरन (स्मरण) जन्म-जन्मांतर के किए पापों के संस्कार एवं कर्मों को सदा के लिए मिटा देता है। इस तरह अलख जगाते हुए अपने अंतिम समय में सामान्य ग्रस्त की भूमिका में रहकर  गुरु अंगद देवजी को गुरु गद्दी देकर ज्योति जोत में समा गए।
           सम्पूर्ण सिख समाज सहित विश्व को अपने ज्ञान के आलोक से प्रकाशित करने वाले गुरु नानक के चरणों में प्रणाम करते हैं।
"नानक नाम जहाज है जो चढे सो उतरे पार"

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