मैंने हाल में ही एक समाचार में पढ़ा कि ' लेज ' ( आलू चिप्स ) में सूअर कि चर्बी मिलाई जा रही है और इस तथ्य को जानने के बाद मैंने अपने बच्चों को ये बात बताई है और उनको समझाया है कि बेटा अब से तुम लोग लेज मत खाना , नहीं तो दिन में दो तीन पाकेट तो आ जाते थे , घर में पर अब मैंने ठान लिया है कि आज अभी से ' लेज ' नो एंट्री
' लेज ' ही क्योँ किसी भी कंपनी का कोई भी इस तरह का प्रोडक्ट शाकाहार की दृस्टि से ठीक नहीं है यदि आप शाकाहारी न हों तो आप मेरी गुजारिश की उपेक्षा कर सकतें हैं
एक प्रोडक्ट है ' कुरकुरे ' जिसका प्रचार हीरो हीरोइनें करतीं हैं पर ये खतरनाक है इसको तो पांच साल से अपने घर भीतर आने नहीं दिया है इसको आप जला कर देखिएगा एसिड होने के कारण यह प्लास्टिक कि तरह समूचा जल जाता है और सिकुड़कर काले प्लास्टिक से तत्व में बदल जाता है
बेहतर होगा कि आप थोक के भाव आलू ले आयें और घर पर है चिप्स बनायें वो आपको महंगा भी नहीं पड़ेगा यदि थोडा मेहनत कर के हम विश्वसनीय और क्वालिटी वाली चीज़ें बच्चों को दे सकते हैं तो यह जरुर होना चाहिए
आजकल की माताएं अब ' 'मम्मियां ' बन गयीं हैं आशय यह है कि अब माताएं ज्यादातर पहले की माताओं की तरह मेहनत करते नहीं दिखतीं हैं और बच्चों की टिफिन में मेहनत से बनायीं गयी रोटी पट्ठे पूरियां साग रखने की बजाये झट - पट बन जाने व वाले और मैदे से बने हुए ' नूडल्स चाउमिन मैगी पाश्ता ' टिफिन में रखकर अपने कर्त्तव्यों को पूरा मान लेतीं हैं बच्चों को रोजाना या आये दिन मैदे से बनी इस तरह की चीज़ें खिलोगे तो उनको उदर ( पेट ) सम्बन्धी बीमारियां तो होंगी ही और स्वास्थ्य पर भी उल्टा असर पड़ेगा जल्दी सुबह उठें और बच्चों को ताज़ी रोटी घी लगाकर या फिर पराठे पूरी बनाकर रख दें तो क्या बुराई है भाई .....
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