28 मई 2013

गेहूं सड़ता नहीं सडाया जाता है ...! फिर उसको

गेहूं सड़ता नहीं सडाया जाता है ...!
 फिर उसको कौड़ियों के भाव
 शराब बनाने वाली कंपनियों को बेच दिया जाता है...!

 इस देश में करोड़ों लोगों ऐसे हैं
 जिनको पूरे जीवन में एक बार भी भरपेट भोजन नसीब नहीं होता
 कल पेट भर के खायेंगे
 इसी आस में उनकी जिंदगी कट जाती है... !

 दूसरी तरफ
 वह गेंहूँ ....जिस पर सरकारी सब्सिडी दी जाती है...
 वह गेंहूँ ... जिसे ऊँचे दामों पर सरकार खरीदती है
 वह गेंहूँ.....जो राशन की दुकानों से होता हुआ सस्ते दर पर गरीबों की थाली तक जाना चाहिए ..
 वही गेंहूँ ....बारिश की बूंदों के साथ रिस रिस कर शराब की हरी नीली बोतलों में सीलबंद होकर प्यालों में नाचने लगता है....!
 गरीब ...फिर ठगा का ठगा रह जाता है..!!

 कब तक चलेगा ऐसा...
 भारत माँ का ही एक बेटा ...कब तक भूखे पेट सोयेगा...!!

 ज्यादा से ज्यादा शेयर करे..........


 via: राजीव दीक्षित ji

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