24 जुलाई 2011

खादी एक नुकसान में चलने वाला व्यापर था और आज भी हे |

अंग्रेजो ने टाटा, बिरला, साराभाई आदि व्यापारियो को मोहनभाई को पैसे देने की इज़ाजत क्यू दी ?
ब्रिटेन या अंग्रेजो ने टाटा, बिरला, साराभाई आदि व्यापारियो को मोहनभाई को पैसे देने की इज़ाजत क्यू दी ? दूसरे शब्दों में क्या मोहनभाई को अंग्रेजो ने पैसे दिए थे ?

सारांश :
अंग्रेजो ने भारत के उस वक्त के जाने मने व्यापारियो को यह इज़ाज़त दे दी के वो लोग मोहनभाई को अपने आंदोलन के लिए पैसे दे दे क्युकी इससे नेताजी सुभाष चंद्र बोज, भगत सिंग आदि का बाज़ार खतम हो जाए | वास्तव में मोहनभाई ने ऐसा कार्यक्रम तैयार किया था जिसमे वोह देश के आज़ादी संग्राम के कार्यकर्ताओ को व्यर्थ (टाइम पास) प्रवृति में व्यस्त रखते थे ताकि वो लोग भगत, उधम, धींगरा और सुभाष ना बन पाए और उनके नक्शों-कदम पर ना चले |

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कृपया गूगल में सर्च कीजिये, जिसमे हेनरीभाई फोर्ड ने कहा था की “इतिहास का अध्ययन करना बेकार है” और हम भी ऐसा मानते हे | हम बादमे समझाएगे की इतिहास का अध्ययन करना क्यू बेकार है | उससे भी खराब सभी इतिहास लिखने वाले इतिहासकार पैसे लेके ही इतिहास लिखते हे जेसे की सारा मीडिया और पत्रकार पैसा लेके ही खबर छापते हे | सारी किताबे नाकि सिर्फ जूथ बोलती हे बल्कि बडे चतुर तरीके से उसके जूथ भरा जाता हे यह सब आपको कुछ अन्य लेख में सम्जायेंगे |

इस लेख में हमारा एक सवाल हे : क्यू अंग्रेजो ने टाटा, बिरला, बजाज और साराभाई आदि व्यापारियो को मोहनभाई को पैसे देने की इज़ाजत दी ? (में मोहनभाई का विरोधी हू इस लिए में “गांधीजी” शब्द का इस्तमाल नहीं करूँगा) क्या आपके सामने यही प्रश्न पेहले कभी आया हे ? क्यू कोई भी इतिहासकार ने पेहले कभी ये सवाल नहीं पूछा ?

मुझे सवाल विस्तृत करने दीजिए. इतिहासकारों का केहना हे की मोहनभाई और उनकी कंपनी (जिसको कोंग्रेस भी केहते हे) और उनकी चरखा चलाने वाली सेना ने अंग्रेजो का काफी नुकसान किया था | इतिहासकारों के मुताबिक उनकी चरखा चलाने वाली सेना में हजारों-लाखो लोग थे जो १०० किलोमीटर प्रति घंटे के हिसाब से चरखा चलाते थे और साथ में उतने जोर से भजन गाते थे की लाउड स्पीकर की भी जरुरत नहीं पडती थी | और उन्ही चरखा चलाने और भजन गाने की प्रवृति की ताकत से अंग्रेजो ने भारत को छोड़ दिया | उन चरखा चलाने वालो को पैसा टाटा, बिरला, बजाज, साराभाई आदि व्यापारियो से मिलता था | अब मुझे आपको एक सवाल पूछना हे : यदि आप व्यापारी होते और अंग्रेज आपको केहते की मोहनभाई को पैसा देना बंध कार दो वर्ना हम तुमे जैल में डाल देंगे तो आप आप मोहनभाई को पैसे देने की हिम्मत करते ? में शर्त लगा कर केह शकता हू की आप आप मोहनभाई को एक पैसा भी नहीं देते | कोई बड़ा व्यापारी सपने में भी अंग्रेजो को मना नहीं कर शकता | टाटा, बिरला, बजाज, साराभाई आदि बडे व्यापारी उन वक्त व्यापार का परवाना (लाइसन्स), व्यापार के लिए हाईटेक टेक्नोलोजी आदि के लिए अंग्रेजो पर आधीन थे | अगर वो अंग्रेजो का कहा नहीं करते तो उनका व्यापार का परवाना रद हो जाता और उनका व्यापर बंध हो जाता | सब बात की एक बात, अंग्रेजो ने कभी भी उन व्यापारियो को मोहनभाई को पैसा देने से रोका नहीं |

अब मुझे दूसरा सवाल पूछना हे : क्यू अंग्रेजो ने उन व्यापारियो को मोहनभाई को पैसे देने से रोका नहीं ? अगर मोहनभाई अंग्रेजो को नुकसान पंहुचा रहे थे तो सबसे अच्छा रास्ता था की उनका सप्लाई या आपूर्ति रोक दी जाये लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ | अगर आप अंग्रेजो की जगह होते तो आपको क्या फायदा होता अगर कुछ जानेमाने व्यापारी मोहनभाई को पैसा देते |

व्यापर मे या राजनीति मे, दो जिसे आवश्यक हे | एक तो मुनाफा ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना और नुकसान को कम से कम करना | क्या होता अगर मोहनभाई के पास अपने कार्यक्रम के लिए पैसे कम पड़ जाते | तो फिर सारे आश्रम बंध हो जाते | उसके बाद लाखो कार्यकर्ता जो आज़ादी के लिए अपनी जान दे शकते थे और ले भी शकते थे वो रस्ते पर आ जाते और उनके लिए समय-व्यर्थ करने वाली प्रवृति जेसे की चरखा चलाने लिए लिए और भजन गाने के लिए कोई भी जगा नहीं बचती | फिर वो लोग अपने आप सही रास्ता धुन्धने का प्रयत्न करते | क्या होता अगर उन्मेसेही ५% लोग अगर भगत, उधम, धींगरा या सुभाष बन जाते ? एक भगत या एक धिन्गारत कम से कम एक अंग्रेज को मार सकता हे और अगर वो समजदारी से कोई प्लान या योजना बनाते तो फिर एक भगत ४ अंग्रेज को मार सकता था | अगर १ लाख भारतीय नौजवान अगर उधम या भगत बन जाते तो ४ लाख अंग्रेजो का वध हो जाता | १९३८ में भारत में कितने अंग्रेज थे ? सिर्फ १ लाख | तो स्पष्ट बात हे की उनको भगाने के लिए सिर्फ १ लाख भारतीय काफी थे | इस लिए जाहिर सी बात हे की अगर १ लाख लोग अगर उधम, भगत, धींगरा या सुभाष बन जाते तो उनको भारत जख मारके छोडना पड़ता |

ईसी तरह जब मोहन भाई को जब अपने समय का व्यर्थ करने वाले कार्यक्रम करने के लिए पैसे मिले तो अंग्रेजो का नुकसान कम हो गया | कोई भी भारत ना नौजवान आज़ादी के लिए अपनी जान दे सकता था तो किसीकी जान भी ले सकता था ये बात आम हे | ईसी लिए मोहनभाई ने उन नौजवान लोगो को चरखा दे दिया, उनको भजन गाने के लिए कहा, उनसे बाथरूम साफ करवाया और ईसी तरह की बाकि समय का व्यर्थ करने वाली प्रवृति पांच से आठ साल तक करवाई | उसके बाद अगर एक बार नौजवान की शादी और बच्चे हो जाते तो वो निष्क्रिय हो जाता और फिर बादमे अंग्रेजो के लिए कोई खतरा नहीं रेहता | सब बात की एक बात मोहनभाई के आश्रम ऐसे कारखाने थे जो भारत के लिए मर-मिटने वाले नौजवानों को चरखा चलाना, भजन गाना ऐसे समय का व्यर्थ करने वाली प्रवृति कराते थे जो लोग ५-१० अंग्रेज को मारने की क्षमता रखते थे | अगर उस समय यह मोहनभाई के आश्रम नहीं होते और ५% भारतीय भगत सिंग बन जाते तो यह अंग्रेज मिट्टी में मिल जाते | ईसी तरत मोहनभाई के आश्रम के अंग्रेजो का नुकसान कम कर दिया |

लेकिन आश्रम चलाने के लिए लाखो रूपये का दान चाहिए | और खादी एक नुकसान में चलने वाला व्यापर था और आज भी हे |

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